Hike in Minimum Wages: केंद्र सरकार ने श्रमिकों के लिए एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने न्यूनतम मजदूरी दर में बढ़ोतरी करते हुए इसे 1,035 रुपये प्रतिदिन तक कर दिया है। यह फैसला श्रमिकों को बढ़ती महंगाई से राहत देने के लिए लिया गया है। इस बढ़ोतरी से देश भर के लाखों श्रमिकों को फायदा होगा।
यह नई दरें 1 अक्टूबर 2024 से लागू होंगी। सरकार ने वैरिएबल डियरनेस अलाउंस (VDA) में संशोधन करके यह बढ़ोतरी की है। इससे पहले अप्रैल 2024 में भी मजदूरी दरों में संशोधन किया गया था। सरकार साल में दो बार – अप्रैल और अक्टूबर में न्यूनतम मजदूरी दरों की समीक्षा करती है।
न्यूनतम मजदूरी क्या है?
न्यूनतम मजदूरी वह न्यूनतम राशि है जो एक नियोक्ता को अपने कर्मचारियों को देनी होती है। इसका उद्देश्य श्रमिकों को एक बुनियादी जीवन स्तर सुनिश्चित करना है। भारत में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के तहत न्यूनतम मजदूरी तय की जाती है।
न्यूनतम मजदूरी श्रमिकों के कौशल स्तर और भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग होती है। इसे समय-समय पर संशोधित किया जाता है ताकि मुद्रास्फीति और जीवन यापन की बढ़ती लागत को ध्यान में रखा जा सके।
न्यूनतम मजदूरी बढ़ोतरी की मुख्य बातें
विवरण | जानकारी |
नई न्यूनतम मजदूरी दर | 1,035 रुपये प्रतिदिन तक |
लागू होने की तिथि | 1 अक्टूबर 2024 |
किसके लिए लागू | केंद्रीय क्षेत्र के श्रमिक |
पिछला संशोधन | अप्रैल 2024 |
संशोधन का आधार | वैरिएबल डियरनेस अलाउंस (VDA) |
लाभार्थी | निर्माण, खनन, कृषि आदि क्षेत्रों के श्रमिक |
उद्देश्य | बढ़ती महंगाई से राहत |
किन श्रमिकों को मिलेगा फायदा?
इस बढ़ोतरी से निम्नलिखित क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को फायदा होगा:
- निर्माण क्षेत्र
- खनन उद्योग
- कृषि क्षेत्र
- लोडिंग और अनलोडिंग
- सफाई कर्मचारी
- सुरक्षा गार्ड
- अन्य असंगठित क्षेत्र के श्रमिक
नई न्यूनतम मजदूरी दरें
सरकार ने श्रमिकों को उनके कौशल स्तर के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा है:
- अकुशल श्रमिक: 783 रुपये प्रतिदिन (20,358 रुपये प्रति माह)
- अर्ध-कुशल श्रमिक: 868 रुपये प्रतिदिन (22,568 रुपये प्रति माह)
- कुशल श्रमिक: 954 रुपये प्रतिदिन (24,804 रुपये प्रति माह)
- अत्यधिक कुशल श्रमिक: 1,035 रुपये प्रतिदिन (26,910 रुपये प्रति माह)
इसके अलावा, भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर भी मजदूरी दरें अलग-अलग हैं। देश को तीन क्षेत्रों – A, B और C में बांटा गया है।
न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का उद्देश्य
सरकार ने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने के पीछे निम्नलिखित उद्देश्य बताए हैं:
- महंगाई से राहत: बढ़ती महंगाई के कारण श्रमिकों को होने वाली परेशानी को कम करना।
- जीवन स्तर में सुधार: श्रमिकों के जीवन स्तर में सुधार लाना और उन्हें बेहतर जीवन जीने का मौका देना।
- आर्थिक असमानता कम करना: समाज में आर्थिक असमानता को कम करने में मदद करना।
- श्रम शोषण रोकना: नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों के शोषण को रोकना।
- अर्थव्यवस्था को गति: श्रमिकों की क्रय शक्ति बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को गति देना।
न्यूनतम मजदूरी बढ़ोतरी का प्रभाव
इस बढ़ोतरी का श्रमिकों और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा:
- श्रमिकों की आय में वृद्धि: श्रमिकों की मासिक आय में लगभग 2,000 से 3,000 रुपये तक की वृद्धि होगी।
- जीवन स्तर में सुधार: बढ़ी हुई आय से श्रमिक अपने और अपने परिवार के लिए बेहतर भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त कर सकेंगे।
- क्रय शक्ति में वृद्धि: श्रमिकों की बढ़ी हुई आय से उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी, जिससे बाजार में मांग बढ़ेगी।
- अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: बढ़ी हुई मांग से उत्पादन बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।
- गरीबी में कमी: न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि से गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में कमी आएगी।
न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण कैसे होता है?
न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कई कारकों को ध्यान में रखा जाता है:
- मुद्रास्फीति दर: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में बदलाव के आधार पर मजदूरी में संशोधन किया जाता है।
- जीवन यापन की लागत: खाद्य पदार्थों, आवास, परिवहन आदि की कीमतों में बदलाव को ध्यान में रखा जाता है।
- क्षेत्रीय असमानताएं: विभिन्न राज्यों और शहरों में जीवन यापन की लागत अलग-अलग होती है, इसलिए क्षेत्रीय स्तर पर भी मजदूरी तय की जाती है।
- कौशल स्तर: श्रमिकों के कौशल और अनुभव के आधार पर अलग-अलग दरें तय की जाती हैं।
- उद्योग की क्षमता: विभिन्न उद्योगों की भुगतान क्षमता को भी ध्यान में रखा जाता है।
- अंतरराष्ट्रीय मानक: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के दिशानिर्देशों को भी ध्यान में रखा जाता है।
न्यूनतम मजदूरी से संबंधित कानून
भारत में न्यूनतम मजदूरी से संबंधित कुछ प्रमुख कानून हैं:
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948: यह कानून न्यूनतम मजदूरी तय करने और उसे लागू करने का आधार है।
- मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936: यह कानून नियोक्ताओं को समय पर मजदूरी का भुगतान करने के लिए बाध्य करता है।
- समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976: यह कानून समान काम के लिए पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन देने का प्रावधान करता है।
- बंधुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: यह कानून बंधुआ मजदूरी को गैरकानूनी घोषित करता है।
- श्रम संहिता, 2019: यह नया कानून पुराने श्रम कानूनों को समेकित करता है और न्यूनतम मजदूरी के नए प्रावधान करता है।
डिस्क्लेमर
यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। हालांकि इसमें दी गई जानकारी सही और अद्यतन रखने का प्रयास किया गया है, फिर भी यह पूरी तरह से सटीक या पूर्ण नहीं हो सकती है। न्यूनतम मजदूरी दरें समय-समय पर बदलती रहती हैं और विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में अलग-अलग हो सकती हैं।
इसलिए, पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने क्षेत्र में लागू वर्तमान न्यूनतम मजदूरी दरों के लिए स्थानीय श्रम कार्यालय या सरकारी वेबसाइटों से संपर्क करें।